रविवार, 18 सितंबर 2016

कन्वर्जेन्स से बदलती प्रिंट मीडिया की कार्यप्रणाली



 







प्रश्न यह उठता है की कन्वर्जेन्स क्या है? ग्रांट और विल्किन्सिन ने 2009 में बताया कि अलग-अलग उपकरणों और तकनीकों का एक साथ आकर समाचार निर्माण और वितरण में ही कन्वर्जेन्स है. सिद्धांतकार इसपर सहमत हैं कि कन्वर्जेन्स का तात्पर्य है दो या दो से अधिक तत्वों का एक साथ मिलना. इस तरह कन्वर्जेन्स का अर्थ ‘सम्मिलन’ होता है और मीडिया कन्वर्जेन्स का तात्पर्य है मीडिया के सभी उपलब्ध प्रकार का एक सामान्य आधारभूमि पर एकजुटता. मीडिया कन्वर्जेन्स सूचना, संचार तकनीक, कंप्यूटर नेटवर्क और मीडिया विषयवस्तु से एक दुसरे का अंतर्संबंध है. इसमें ‘त्रि-सी(C)’ शामिल होते हैं जिसमें कप्यूटर-कम्युनिकेशन-कंटेंट है. परन्तु टी. कुबिस ने इसमें कंटेंट, कम्युनिकेशन, वितरण और उपभोक्ता को भी शामिल किया है.
  
प्रश्न यह उठता है कि मीडिया कन्वर्जेन्स से प्रिंट मीडिया की कार्यप्रणाली में क्या परिवर्तन हुए हैं.

‘राजस्थान पत्रिका’ देश दुनिया की बड़ी खबरों से अपडेट करते हुए ‘फटाफट अंदाज में’ 3.21 मिनट का खबर ‘दिखाता’ है.जब एक समाचारपत्र का पोर्टल समाचार दिखाता है तो इससे यह तो पता चलता है कि मीडिया कन्वर्जेन्स ने प्रिंट मीडिया की कार्यप्रणाली को प्रभावित किया है.यह परिवर्तन सामान्यता सभी समाचारपत्रों में देखी जा सकती है. ऑडिट ब्यूरो ऑफ़ सर्कुलेशन की गणनानुसार सबसे अधिक प्रसार वाली समाचारपत्रों यथा- दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, अमर उजाला, हिन्दुस्तान, मलयालम मनोरमा, इनाडु, राजस्थान पत्रिका, अमृत बाजार पत्रिका, डेली थांती और मातृभूमि के अध्ययन के बाद यह कहा जा सकता है कि मीडिया कन्वर्जेन्स ने समाचारपत्रों के कार्यप्रणाली को परिवर्तित किया है. यह अपने वेब संस्करण में मात्र प्रिंट समाचारपत्र न होकर मीडिया के अन्य माध्यमों दृश्य-श्रव्य, फोटो, ब्लॉग का समावेश किया है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया, मलयालम मनोरमा,डेली थांती और मातृभूमि ने अपने पोर्टल में लाइव टेलीविजन को भी शामिल किया है.
ऐसा नहीं है कि सभी समाचारपत्र की कार्यप्रणाली को मीडिया कन्वर्जेन्स ने परिवर्तित किया है. उदहारण के लिए 2 लाख की पाठकीयता वाला समाचारपत्र ‘कश्मीर टाइम्स’ अपने वेब पोर्टल में भी परंपरागत प्रिंट माध्यम ही बना रहा. इसके पोर्टल में चार संस्करण हैं. इसी तरह पत्रिकायों की उपलब्धता तो इंटरनेट पर है परन्तु मीडिया कन्वर्जेन्स ने इनकी कार्यप्रणाली को प्रभावित नहीं किया है.
2014 में ‘गाइड टू इंट्रीग्रेटेड मार्केटिंग एंड मीडिया कन्वर्जेन्स’ पुस्तक लिखने वाले टी.कुबिस ने मीडिया कन्वर्जेन्स को सकरात्मक परिवर्तन मानते हुए बताया कि परिवर्तन हमेशा प्राकृतिक चयन सिद्दांत के तहत कार्य करता है और प्रिंट मीडिया इस परिवर्तन को समाहित करके अपना विकास कर सकता है. इनका मानना है कि 18-24 आयुवर्ग के पाठक प्रिंट संस्करण की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. इन्होनें आशा व्यक्त की है कि आगामी 10 वर्षो में प्रिंट मीडिया अपने ‘हाइब्रिड’ स्वरूप में समाचार, सम्पादकीय और फीचर आधारित समाचारों के गंभीर विवेचन और विश्लेषण के कारण लोकप्रिय हो जाएगा.
लिबर्टी विश्वविद्यालय (संयुक्तराष्ट्र अमेरिका) में अमांडा सुल्लिवन ने 2012 में किए एक अध्ययन में बताया कि समाचार मीडिया प्रवाह में मीडिया कन्वर्जेन्स ने समाचारपत्रों को प्रभावित किया है. कन्वर्जेन्स में न्यूज पोर्टल और सोशल मीडिया की तकनीकी प्रवाह ने प्रिंट मीडिया के प्रसार को प्रभावित किया है. क्षण-प्रतिक्षण बदलती तकनीकी दौर में परंपरागत प्रिंट माध्यम कोई ‘ब्रेकिंग न्यूज’ देने में अक्षम है. इन्होनें कन्वर्जेन्स को प्रिंट मीडिया का क्षरण नहीं बल्कि कायांतरण माना है.
यधपि उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने मीडिया कन्वर्जेन्स पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि “तकनीकीकरण और मीडिया कन्वर्जेन्स से व्यापारिक मूल्य भले ही बढ़ते हों, लेकिन यह समाचार प्रसारण में परंपरागत सार्वजानिक सेवायों के लिए चुनौतियां भी प्रस्तुत करता है.”


गुरुवार, 25 अगस्त 2016

विकास को राह दिखाता समाचारपत्र




 
विकास की राह समाचारपत्रों से होकर गुजरता है.
भारतीय भाषायों के समाचारपत्रों पर आधारित पुस्तक लिखने के दौरान रॉबिन जेफ्री को एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि अख़बारों ने पुलिस का काम बहुत मुश्किल कर दिया.इससे पता चलता है कि समाचारपत्रों ने लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया है और उनके सरोकारों से जुड़कर विकास हेतु काम किया है. रॉबिन जेफ्री ने सीतम्मा की कथासे प्रेरित मई 1992 ई. में आंध्रप्रदेश के नेल्लोर के डुबागुंटा नामक गावं की घटना के संदर्भ में बताया कि किस प्रकार एक छोटी घटना का समाचारपत्र इनाडूमें आने के बाद आंध्रप्रदेश में ताड़ी-शराब के खिलाफ एक जन आंदोलन बन गई. इन उदाहरणों से यह स्थापित करने की कोशिश की जा रही है की किस तरह विकास में समाचारपत्रों की एक बड़ी भूमिका होती है. सूचना एक प्रभावशाली उपकरण है और समाचारपत्र के माध्यम से किसी सूचना को प्रकाश में लाकर विकास हेतु प्रेरित किया जा सकता है.
विकास की अवधारणा में आधारभूत संरचना अर्थात् सड़क-बिजली-पानी और मानवीय संरचना अर्थात् शिक्षा-स्वास्थ्य-साक्षरता को शामिल किया जाता है. भारत जैसे विकाशील देश में जंहा मानवीय संरचना और आधारभूत संरचना के मापदंड के स्तर में संतोषजनक नहीं हैं वैसी स्थितिः में समाचारपत्रों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है है. प्रभात खबर ने बिहार विशेषांक विकास के मुद्दे पर 11 मई 2005 को विकास : बहुत लंबी राहके नाम पर 84 पन्नों का विशेष संस्करण निकाला जिसमें बिहार के पिछड़ेपन और विकास को लेकर सम्पूर्ण सर्वे था. इसी तरह की कोशिश समाचारपत्रों द्वारा की जाती रही है. निरंतरसमाचारपत्र ने व्याबर(राजस्थान) और नवभारतने बस्तर(छतीसगढ़) में विकास को लेकर संवेदनशील हैं.
ग्रासरूट और लघु समाचारपत्रों के प्रसार तथा बड़े-मध्यम समाचारपत्रों के स्थानीय संस्करण ने स्थानीयता और विकास को केंद्र में रखने की कोशिश की है. हिन्दी समाचारपत्र के स्थानीयता पर कैलाश विजयवर्गीय का कहना था कि इससे छोटे पाठकों को बड़ी न्यूज मिल जाती है और बड़े पाठकों को छोटी न्यूज मिल जाती है.अविकास को लोगों के सामने उजागर करके उसका निदान किया जा सकता है. पहले यह सूचना’ ‘खबर बन ही नहीं पाती थी और प्रशासन तक नहीं पहुंचती थी.


 खबर लहरिया ने चित्रकूट(उत्तर प्रदेश) के मानिकपुर प्रखंड से 8 किलोमीटर दूर सुखरामपुर गाँव में जिसकी जनसंख्या 600 थी में टी.बी. की बीमारी की रिपोर्टिंग सबसे पहले करके प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया था.इसके बाद स्वास्थ्य प्रशासन ने समुचित इलाज की व्यवस्था कर कई लोंगों को बीमारी से मुक्त किया. खबर लहरियाने भरतकूप चित्रकूट में अवैध खनन के मुद्दे को उठाया था हिंदुस्तान सीमेंट कंपनीने अगस्त 2004 से इस खुदाई मामले की खबर सबसे पहले इसी अखबार में छपी और इसका असर हुआ.  चित्तूर(आन्ध्रप्रदेश) की नवउद्यम पत्रिका ने नशाबंदी, ग्रामीण क्षेत्रों में ऋणग्रस्तता के समस्या पर केंद्रित होती है. जनवरी 2010 ई.में इस पत्रिका ने शिवरात्रि के अवसर पर होने वाले बाल-विवाह को मुद्दा बनाया था. देवेदु पिल्ली’(भगवान का विवाह) के अवसर पर प्रतिवर्ष 2000 बाल-विवाह होता था.इस परम्परा के विरुद्ध पत्रिका ने बाल-विवाह की बुराइयों को उजागर करके चेतना फ़ैलाने का काम किया जो सफल रहा.

खबर लहरियाहिन्दी मिश्रित बुन्देली बोली में प्रकशित हिने वाला एकमात्र भारतीय भाषायी पाक्षिक समाचार पत्र है जिसे 8 ग्रामीण गरीब दलित महिलायों द्वारा चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)से प्रकाशित किया जाता है इसकी सहायता निरंतर ट्रस्ट (नई दिल्ली) द्वारा की जाती है. 2002 में ग्रामीण महिलायों के समूह द्वारा यह प्रारंभ किया गया यह पत्र चित्रकूट और बांदा के 300 से अधिक गाँवों में पढ़ी और सुनीजाती है. खबर लहरिया स्थानीय भाषा में स्थानीय आवश्यकताओं और सवेदनाओ से युक्त ग्रामीण पत्रकारिता की एक नई पहल है जो हाशिये पर खड़ी दलित और पिछड़ी वर्ग की महिलायों द्वारा संचालित की जाती है.
ग्रामीण पत्रकारिता में खबर लहरिया जनपक्षधरता का पर्याय बन चुका है. आज की मुख्यधारा की मीडिया के सामने जंहा लगातार बढते मुनाफे और आर्थिक वृद्धि का दबाव है दुसरी ओर न्याय,विकास और लोकतांत्रिक आग्रह के लक्ष्य के साथ वैकल्पिक मीडिया के रूप में खबर लहरिया पहचान बनाने में सफल रहा है. जंहा मुख्यधारा की मीडिया कुछ खास लोगों के लिए अथाह लाभ हेतु काम करती है वन्ही सभी के न्याय को लेकर खबर लहरिया ग्रामीण क्षेत्रों में वैकल्पिक मीडिया का सार्थक निर्वाह कर रही है.लोकतंत्र,विकास और न्याय के पक्ष में खबर लहरिया की बढती भूमिका ने ग्रामीण पत्रकारिता को व्यापक जनस्वीकृति दिलवाई.
चित्तूर (आन्ध्रप्रदेश) की 6 गरीब ग्रामीण महिलायों ने महिलायों से संबद्ध मुद्दे को एक आवाज देने के लिए तेलगू भाषा में न्यूजलेटर की शुरूआत की. इनका मानना था कि इनको सूचना से सूचित करके सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ाया जा सकता है. आज नवोदयम 750 प्रति से  30000 प्रति तक पहुँच गया है. वर्तमान में इसके पाठकों की संख्या 2 लाख है. इस पत्रिका में समाचार संकलन से लेकर ले आउट डिजायन परिकल्पना का काम महिलायों द्वारा किया जाता है. इस मासिक पत्रिका में घरेलू मुद्दों तथा विशेष विषयों पर आधारित मुद्दे भी होते हैं. इस पत्रिका से जुड़ी इन अर्धशिक्षित महिलायों को समाचार संकलन और समाचार संपादन, यंहा तक कि वीडियो फिल्म बनाने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया है. यह महत्वपूर्ण है कि हाशिये की आशिक्षित/अर्धशिक्षित महिलायों ने आंध्रप्रदेश में इस मूक क्रांति को प्रारंभ किया है.
यह सामुदायिक पत्रिका सरकार और ग्रामीण महिलायों के बीच एक मजबूत कड़ी के रूप में उभरकर सामने आई है. इसके माध्यम से सरकार अपनी सूचनायों के प्रवाह को ग्रामीण महिलायों की ओर प्रेषित करती है ताकि महिलाओं को सरकारी योजनायों का लाभ मिल सके. जिससे महिलायें अपना विकास कर सके.दूसरी ओर इसके माध्यम से सरकार महिलायों की समस्या से अवगत हो सके. यह नवउदयम परियोजना विश्व बैंक गरीबी निवारण कार्यक्रम का एक भाग है. इस न्यूजलेटर का पहला अंक सूचना द्वारा सशक्तिकरण की बात करती थी, जो 15 अगस्त 2000 को प्रकाशित हुई थी. इनका मुख्य उद्देश्य गावं के लिए समाचारपत्र निकालना था.इसके लिए चित्तूर जिले के 6 ग्रामीण गरीब दलित महिलाएं तिरुपति में एकत्र हुई. सशक्तिकरण के लिए सूचनाको आधार बनाकरनवउदयमएक न्यूजलेटर के रूप में प्रारंभ हुई.


किसी क्षेत्र में विकास के लिए समस्याओं की सूचनाका खबरबनना जरुरी होता है और इसके लिए समाचारपत्र का होना जरुरी है.